Wednesday, February 9, 2011

गनीमत है बीमारी के साथ हो रहा इलाज

इसे शुभ लक्षण ही कहेंगे कि देश में भ्रष्टाचार, गुंडा-गर्दी और अधिकारियों की लापरवाही के साथ ही उनका इलाज भी हो रहा है। बात चाहे स्पेक्ट्रम घोटाले के मुख्य आरोपित ए. राजा की हो अथवा उत्तर प्रदेश में लापरवाह अधिकारियों को मुख्यमंत्री सुश्री मायावती द्वारा निलिम्बत किये जाने की, इतना तो पता चलता है कि हमारे नियामक सो नहीं रहे हैं। गठबंधन और कुर्सी बचाने की राजनीति के बीच भी इस प्रकार के कदम उठाये जा रहे हैं तो एक न एक दिन इसके अच्छे परिणाम जनता को दिखाई देने लगेंगे। हालांकि यह अभी शुरुआत भर है और चुनौतियां धीरे-धीरे सामने आ रही हैं। पहले तो कई मामले यूं ही दबे रहते थे लेकिन अब मीडिया भी इनको तलाशता रहता है। इसे राजनीतिक साजिश न बनाया जाए बल्कि राजनेताओं से लेकर मीडिया तक और जनता को शामिल करते हुए यह मुहिम यंू ही चलती रहनी चाहिए। अभी 30 जनवरी को देश भर में प्रबुद्धजनों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ शांति मार्च किया था। इसी के बाद 2-जी स्पेक्ट्रम मामले के मुख्य आरोपित ए. राजा और उनके दो अफसरों के घरों पर छापे मारे गये और 2 फरवरी को इन तीनों को गिरफ्तार भी कर लिया गया। यह उन पहुंच वाले भ्रष्टाचारियों को चेतावनी है क्योंकि अभी तक की लम्बी फेहरिश्त राजनेताओं की ही है। इनमें किसी पर जमीन घोटाले तो किसी पर आय से अधिक सम्पत्ति के मामले हैं। इसी प्रकार तमाम अधिकारी भी आरोपों को छिपा नहीं पा रहे हैं। पूर्व मुख्य सचिव स्तर तक के अधिकारियों को जेल की हवा खिलाई जा चुकी है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने पिछले महीने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक बुलाकर उन्हें योजनाओं के ईमानदारी से कार्यान्वयन का निर्देश दिया था। पिछले दो-तीन महीने से उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसी वारदातें हुई हैं जिनसे बसपा सरकार और मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की छवि भी धूमिल हुई है। विपक्षी दलों की राजनीतिप्रेरित आलोचना को किनारे कर दिया जाए, तो भी बांदा के शीलू दुराचार कांड और कानपुर में छात्रा दिव्या हत्याकांड में पुलिस और प्रशासन की भूमिका को शर्मनाक पाया गया। इसी प्रकार की स्थिति राजधानी लखनऊ से सटे एक कस्बे चिनहट में आरती नामक युवती से दुराचार के बाद हुई हत्या में सामने आयी। इस मामले में तो पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने अपने पेशे को भी कलंकित कर दिया था। दबाव पड़ने पर आरती नामक युवती की लाश कब्र से निकालकर दुबारा पोस्टमार्टम कराया गया, तब जाकर सच्चाई सामने आयी। बांदा के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी और कानपुर की छात्रा दिव्या की हत्या के आरोपित भी पकड़े गये।इसी क्रम में प्रदेश के अधिकारियों की भूमिका की जांच करने इन दिनों मुख्यमंत्री सुश्री मायावती निकली हुईं हैं। उन्होंने दो फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश मुरादाबाद और आगरा मण्डलों के जिलों का दौरा कर वहां के विकास कार्य देखे। इससे पूर्व गोरखपुर से उन्होंने विकास कार्यों की समीक्षा का काम शुरू किया था। अधिकारियों में अब उतना अनुशासन नहीं रह गया, यह बात सुश्री मायावती की समझ में आ गयी है। हालांकि इसे राजनीतिक विडम्बना ही कहा जाएगा कि अर्से से मुख्यमंत्री जनता दरबार लगाते चले आ रहे हैं और उसमें विभिन्न जनपदों के लोग शिकायतें करने आते हैं। इसी से जाहिर होता है कि जिलास्तर पर उनकी समस्या का समाधान नहीं हो सका। ऐसे में जिले के उन अधिकारियों को सजा मिलनी चाहिए। दो फरवरी को मुख्यमंत्री ने आगरा और मुरादाबाद मंडल के विकास कार्यों का जायजा लिया। पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने कम से कम किसानों को इतना सक्षम तो बना ही दिया कि वे योजनाओं का पूरा लाभ उठाते हैं। अधिकारियों पर लगाम कसने के साथ ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भी सख्ती करने की जरूरत है। इधर, कई मामलों में बसपा से जुड़े लोगों की भूमिका भी संदिग्ध मिली है। बांदा के दुराचार मामले में मुख्य आरोपी इसी पार्टी के विधायक थे। अभी ताजा मामला चित्रकूट का सामने आया है। यहां पर बसपा के जिला प्रभारी और उनके पुत्र पर एक आदिवासी का घर फूंकने का आरोप लगाया गया है। यह घटना लगभग एक सप्ताह पूर्व की बतायी जा रही है लेकिन मामला चर्चा में तब आया जब उत्तेजित आदिवासियों ने हरदी कला थाने पर पहुंचकर जमकर प्रदर्शन व नारेबाजी की। गंणतंत्र दिवस के दिन हुई इस घटना ने पुलिस की निष्क्रियता को उजागर किया और यह भी संकेत दिया कि पुलिस अभी राजनीतिक दबाव से उबर नहीं पायी है। बसपा के जिला प्रभारी हीरा लाल और उसके पुत्र अजय उर्फ मुन्ना को इतना दुस्साहस दिखाने का मौका न मिलता यदि पुलिस-प्रशासन ने हस्तक्षेप कर मामले को सुलटा दिया होता। मामला छोटा था। आदिवासी मुन्ना कोल के घर के पास बसपा के जिला प्रभारी पुआल जला रहे थे, जिसका मुन्ना ने विरोध किया था। इस तरह एक बात साफ है कि भ्रष्टाचार, गंुडा गर्दी के खिलाफ मुहिम तो चल रही है लेकिन अराजक तत्त्वों पर अंकुश नहीं है। इसका कारण यही कि ये अराजक तत्त्व राजनीति और अफसरशाही का लबादा पहने हुए हैं। गाजियाबाद में एक बीडियो, किसान के पिता का नाम ठीक कराने के लिए सवा लाख रुपये मांगता है और डाक्टर किसी लालच में अथवा लापरवाही से पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही गलत दे देते हैं तो अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है। संतोष की बात यही कि नेतृत्त्व इस पर जागरूक है। श्रीमती सोनिया गांधी केंद्र में सक्रिय है तो सुश्री मायावती अपने राज्य में। यही प्रक्रिया सभी मुख्यमंत्रियों को अपनानी पड़ेगी।

4 comments:

  1. saargarbhit post

    bahut badhiya lekhan
    '
    aabhaar

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  2. सार्थक चिन्तन. शुऱकामनाएँ...

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
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  3. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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