Saturday, February 12, 2011

कानून व्यवस्था पर तर्क कम-कुतर्क ज्यादा

कानून व्यवस्था सीधे सामान्य जनता से जुड़ी है। वही इसकी कसौटी है। उसके रोजमर्रा के काम में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती और असामाजिक तत्वों का कोई भय नहीं रहता तो समझिये कानून-व्यवस्था अपना काम ठीक ढंग से कर रही है लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो उस पर सवाल उठने लाजिमी हैं। एक चोर यह कहकर नहीं बच सकता कि दूसरे भी लोग चोरी कर रहे हैं। हां व्यवस्था की यह जिम्मेदारी जरूर बनती है कि उन दूसरे लोगों को भी गिरफ्त में ले लेकिन मौजूदा राजनीति में तर्क और कुतर्क का सहारा लेकर कमजोरियों पर पर्दा डाला जाता है। अभी 10 फरवरी को खबर मिली कि मध्य प्रदेश में एक कारोबारी की इसलिए हत्या कर दी गयी क्योंकि उसने एक दबंग की बात नहीं मानी थी। हमले का शिकार हुआ एक कारोबारी था और हमले का आरोपित भाजपा परिवार का कार्यकर्ता। कारोबारी ने पुलिस से सुरक्षा की गुहार भी की थी लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार ने ध्यान नहीं दिया। इसतरह की घटनाएं कई प्रदेशांे मंे हो रही हैं जिनमें कुछ सामने आ जाती हैं तो कुछ नहीं आ पातीं। इस संदर्भ में देखें तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक पश्चिम बंगाल और बिहार में एक से बढ़कर एक घटनाएं नजर आती हैं। मध्य प्रदेश मंे संघ परिवार पर कट्टरता का आरोप लग रहा है। राजस्थान के अजमेर शरीफ में विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस में बम धमाका और महाराष्ट्र के मालेगांव में विस्फोट मंे संघ परिवार पर आरोप लगे हैं तो पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ वाममोर्चे पर जहां अपने कैडर को हथियार देकर लोगोें को डराने-धमकाने की बात सामने आयी, वहीं विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस पर माओवादियों को संरक्षण देने का आरोप मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने लगाया है। बिहार में तो एक शिक्षिका ने विधायक पर दुराचार का आरोप लगाया लेकिन उसकी जद(यू) भाजपा सरकार ने नहीं सुनी और नतीजा यह हुआ कि शिक्षिका रूपम पाठक ने उक्त विधायक के आवास पर जाकर उनकी छुरा घोंपकर हत्या कर दी। ये सभी कानून-व्यवस्था की बदहाली की कहानी ही कहते हैं। उत्तर प्रदेश में भी बांदा जनपद के नरैनी क्षेत्र के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी पर एक दलित बालिका शीलू से दुराचार करने का आरोप है। विधायक और उनके बेटे ने तो पुलिस से मिली भगत कर पीड़ित बालिका को ही जेल भिजवा दिया था लेकिन कांग्रेस विधायक और मीडिया की सक्रियता ने सरकार को सख्त कदम उठाने के लिये मजबूर कर दिया। इसके बाद तो कई मामले अखबारों की सुर्खियां बने और विधानसभा के बजट सत्र में अन्य चर्चाओं से कहीं ज्यादा प्रदेश मंे दुराचार की बढ़ती घटनाओं पर शोर मचाया गया।इसी का जवाब देते हुए गत 9 फरवरी को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था अन्य राज्यों से बेहतर है। उन्होंने कानून-व्यवस्था में और सुधार के लिये तथा विकास दर में बढ़ोत्तरी के लिये विपक्षी दलों से सहयोग की मांग की। उत्तर प्रदेश विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री लालजी वर्मा प्रदेश की कानून-व्यवस्था से जुड़े सवालों का जवाब देने से हिचक रहे थे। हो सकता है कि वे इस मामले में मुख्यमत्री सुश्री मायावती से कुछ गाइड लाइन लेना चाहते हों लेकिन सदन की कार्यवाही में मंत्रियों को हर सवाल का जवाब देने के लिये तैयार रहना चाहिए। विपक्षी दलों ने इसीलिए कानून-व्यवस्था को लेकर किये गये सवालों को संदर्भ समिति के हवाले कर दिया। यह मामला लम्बा ंिखंच सकता था, इसलिए सुश्री मायावती ने स्वयं इस पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि हमने तो दोषी सांसदों और विधायकों को भी जेल भेजा है लेकिन आरोप लगाने वाले विपक्षी दल अपने गिरेबान में भी झांककर देखें कि उनकी पार्टी की जहां सरकार है, वहां पर कानून-व्यवस्था किस तरह से काम कर रही है।मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के इस तर्क पर भाजपा को चुप हो जाना चाहिए क्योंकि मध्य प्रदेश में उसकी सरकार है और सुशील शिडौल नामक संघ परिवार का कार्यकर्ता, जिस पर कारोबारी की हत्या का आरोप लगा है, खुलेआम धमकी देता था कि मंत्री, विधायक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। एक व्यक्ति अपनी हत्या की आशंका जताते हुए सरकार से सुरक्षा मांगता है और उसे सुरक्षा नहीं मिलती। दो दिन बाद ही उसकी हत्या कर दी जाती है जो यह साबित करती है कि मध्य प्रदेश की कानून-व्यवस्था तो सचमुच उत्तर प्रदेश से भी बदतर है। इसी तरह कांग्रेस के पास भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं होगा कि दिल्ली में उसकी पार्टी की लगातार तीसरी सरकार बनी है लेकिन दुराचार और हत्या के मामले में दिल्ली सबसे आगे है। क्या यह कहकर बचा जा सकता है कि दिल्ली बहुत बड़ी है और थोड़े-बहुत अपराध होना वहां सामान्य बात है? नहीं, ये सभी कुतर्क हैं। बात गांव की हो अथवा बड़े शहर की, सभी जगह कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिये जनता की गाढ़ी कमाई से वेतन देकर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की फौज तैनात रहती है। इसके बाद भी जनता को सुरक्षा क्यों नहीं मिल पाती। राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी इसलिए बढ जाती है कि वे जनप्रतिनिधि कहे जाते हैं। विधायक से लेकर सांसद तक को अच्छा-खासा वेतन-भत्ता और अन्य सुविधाएं मिलती हैं। वे कानून-व्यवस्था को लागू कराने की जगह उसे तोड़ने वालों के ही मददगार साबित हो रहे हैं। नयी दिल्ली में एक रिटायर्ड नौकरशाह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस बीएस चौहान ने ठीक ही कहा कि यदि हम गोमुख से ही गंगा मंे जहर मिलाना शुरू कर दें तो हुगली में अमृत की अपेक्षा कैसे की जा सकती

No comments:

Post a Comment